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एक दिन परिवार के संग

एक दिन परिवार के संग

एक दिन परिवार के संग

सवेरे से मित्र को चार पांच बार फोन किया ।

लेकिन उसका फोन उठ ही नहीं रहा था।

व्हाट्सएप और फेसबुक पर भी मैसेज किया,

लेकिन कोई जवाब नहीं।

मुझे चिंता हो गई।

आखिर दोपहर बाद रहा नहीं गया।

मैं नजदीक ही रहने वाले मित्र के घर पहुंच गया।

देखा तो श्रीमान गार्डन में एक पुस्तक लेकर बैठे हुए थे।

मैं जाते ही बरस पड़ा।

सुबह से तुम्हें फोन कर रहा हूं। मैसेज भी कर रहा हूं। लेकिन तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं मिल रहा। क्या बात है? तबीयत तो ठीक है ?

मित्र ठठाकर हंस पड़ा और बोला –

भाई, मेरा आज उपवास है। इसलिए फोन पर तुमसे बात नहीं कर सका ।

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।

यार उपवास में खाना नहीं खाते हैं, व्रत रखते हैं, लेकिन फोन पर तो बात कर सकते हैं।

उसने हंसते हुए कहा कि आज मेरा *डिजिटल उपवास* है। हफ्ते में एक दिन के लिए मैंने निश्चय किया है कि ना तो किसी से फोन पर बात करूंगा, ना फेसबुक अपडेट करूंगा, न व्हाट्सएप चैट करूंगा, न ही गूगल लिंक या कोई और सोशल साइट ही देखूंगा। इसे मैंने *डिजिटल उपवास* का नाम दिया है।

सही कह रहा हूं। आज का दिन मेरा बहुत ही बढ़िया गुजरा। न फोन की घंटी और ना समय की कमी। देख कितने दिन हुए महासमर का पहला खण्ड् पढने की इच्छा थी, आज इसे शुुरू कर सका हूं।

इतने में भाभी चाय बना कर ले आइ बोली भाई साहब, आज तो कमाल हो गया। शाम को हमारा पिक्चर देख कर कुछ खरीददारी करने का विचार है और इनके इस *डिजिटल उपवास* ने मुझे कितनी खुशी दी है मैं आपको बता नहीं सकती ।

तब मैंने भी निश्चय किया कि सप्ताह में कम से कम 1 दिन *डिजिटल उपवास* तो मुझे भी करना ही चाहिए। बल्कि मेरी सलाह है हम सबको करना चाहिए ताकि एक दिन तो अपने परिवार को पूरा समय दें।

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